'सबल का नहीं दोष गोसाईं ।' हारा दुखियारा मन कह उठता है ।
पर 'नर हो न निराश करो मन को । ' यह भी किसी ने लिखा है ।
प्रकृति की सर्वोत्तम रचना मानव है । वह आकाश और समुद्र दोनों के गम्भीर रहस्यों को भेदने में लगा है ।
लगन की आग जिसके जिगर में लगी है वह जीतता है जीवन जंग ।
अपनी हार का दोष किसी सबल पर डालते ही मन में नकारात्मक भाव पैदा होने लगते हैं ।
जितनी तेजी से हारें हम , उसकी दुगनी तेजी से हम जीत की ओर अग्रसर हों । जीवन में सफलता हमें जरूर मिलेगी ।
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