Wednesday, August 1, 2018

बेटा और बेटी समान हैं... एक सोचनीय विषय है ।

-इंदु बाला सिंह

घर में जितना भी समानता का वातावरण दे लें हम अपने बेटे और बेटी को पर समाज को देख कर लड़की सुविधाजनक जिंदगी जीना चाहने लगती है । लड़के का काम कमाना और परिवार को सुरक्षा देना और लड़की का काम घर में रह कर परिवार चलाना । थोड़ा सा आजाद ख्याल की लड़की हुई तो वह कोई छोटा मोटा काम कर के अपना बैंक बैलेंस बढ़ा लेना पसंद करती है । वह पैसा उसकी मनचाही वस्तु पर खर्च करने के काम आता है । वह लड़की थोड़ा सा कमा कर अपने थोड़े से आसमान में ही खुश रहती है । और बेटा अपने परिवार व अपने माता पिता की जिम्मेवारी सम्हालते या सम्हालने की चेष्टा करते हुए शुष्क हो जाता है । यही सब वह समाज में देखता है ।

बड़ा कठिन व दृढ़ निश्चयवाला जीव होता है जो अपने मन में समान कर्म व समान हक की आग जलाये रखता है । मैं तो कहूंगी खासकर यह लड़की की जिम्मेवारी है समानता की लगन की अग्नि जगाये रखना । लड़की मां , बहन , बेटी के रूप में समाज की धुरी है जिसके इर्द गिर्द परिवार घूमता है ।
निम्न वर्गीय परिवार में तो पतिपत्नी दोनों मजदूरी करते हैं । यह समस्या मध्यम वर्ग की है । जिस दिन मध्यम वर्ग चेतेगा उसी दिन परिवर्तन आयेगा । वरना यह सब ड्राइंग रूम की बहस भर है । 

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