Monday, February 24, 2014

खेत


ये मदमस्त हवा के झोंके
क्या कोछ न कह जाते हैं
बस मुस्काते ही मुस्काते
सपनों के पर लग जाते हैं |

वह झुकी मक्के की टहनी
बस हमको सिखलाती  है
हर मुसीबतों को पार कर
सुख की कली खिल जाती है |


       नवल सिंह ' क्षत्रिय '

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