देखो आज के
युवकों को
वे नभ को ही
छूना चाहें
किन्तु सागर
की गहराई
वे कभी नाप न
पायें |
ओढ़ कम्बल दौलत
मान का
न जानें
अस्तित्व तजुर्बा
जैसे हो गृह
किसी का
बना हो बिना
नींव का |
चाहूं आज युवक ये जाने
अपनी क्षमता
को पहचानें
अपने को सुदृढ़
बना कर
उन्नत शिखर तक
पहुंचें |
नवल सिंह ' क्षत्रिय '
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