जाड़े
की सुबह थी |
धूप खा रही थी
मैं खड़े खड़े | तभी देखा चारदीवारी और बिजली के तार पर पंक्तिबद्ध हो कर कौवे बैठे
हैं और बार बार नीचे जमीन की ओर देख कांव
कांव करे जारहे हैं |
एक साथ सब
उड़ते हैं फिर आ कर बैठ जा रहे हैं और कांव कांव कर रहे हैं |
" जरूर
कुछ गडबड है ... हो सकता है कोई जानवर मर गया हो ....या कोई सांप वांप देख लिया हो
कौवों ने ! " मन में विचार आया |
पर वहां तो
कुछ नहीं था ... आश्चर्य चकित हो उस फूल की झाड़ियों के पास गयी ...
" अरे
!....यहां तो कुछ नहीं ! "
तभी मेरे बगल
से कुछ फडफडा कर उड़ा ... डर गयी ..सामने कोने में एक बड़ी मुर्गी के आकार का पक्षी
बैठ गया .... अरे ! इसकी आंखे तो गोल हैं !... चेहरे से तो उल्लू दिखता है ...शरीर
तो हल्के भूरे रंग का है ,,,, नवजात मुर्गी सा .... मेरी और उस पक्षी की आंखें
मिलीं .... डर से भागी उलटे पांव .... मुझे लगा अभी वो मेरे सर पर बैठ जाएगा |
उल्लू नहीं
देखा था कभी मैंने |
मेरे
हटते ही फिर कौवे आये ... इस बार वह पक्षी
पकड़ में आ गया उनके ... दो कौवे पकड़ कर उड़े उसे ... कुछ ही दूर में उनकी चोंच से
वह पक्षी छूट गया ...किसी के घर के बगान में गिर पड़ा |
यह उस अनजान
पक्षी की ताकत थी जिसके कारण वह कौवों के समूह के कब्जे से छूटा |