Monday, February 24, 2014

Dare

    

Dont  hope

Decide  &

Do .


खेत


ये मदमस्त हवा के झोंके
क्या कोछ न कह जाते हैं
बस मुस्काते ही मुस्काते
सपनों के पर लग जाते हैं |

वह झुकी मक्के की टहनी
बस हमको सिखलाती  है
हर मुसीबतों को पार कर
सुख की कली खिल जाती है |


       नवल सिंह ' क्षत्रिय '

Friday, February 21, 2014

बढ़ते कदम इन युवकों के

देखो आज के युवकों को
वे नभ को ही छूना चाहें
किन्तु सागर की गहराई
वे कभी नाप न पायें |

ओढ़ कम्बल दौलत मान का
न जानें अस्तित्व तजुर्बा
जैसे हो गृह किसी का
बना हो बिना नींव का |

चाहूं आज  युवक ये जाने
अपनी क्षमता को पहचानें
अपने को सुदृढ़ बना कर
उन्नत शिखर तक पहुंचें |


      नवल सिंह ' क्षत्रिय '

Wednesday, February 19, 2014

Teacher's day poem

O  my teacher !
O  my preacher  !
O  my life guide !
I  abide  you 're from God's side

World was of no meaning
Before you came up shaping
Thoughts of my mind
You're  very kind

You are father
You are mother
You are sister
You are brother
You are ocean
Full of emotion
You are very kind .
       

                   NAVAL SINGH ' NICE '     ( a school boy )

Friday, February 14, 2014

Woman warrior !

Wait  
&
Watch
Warrior is  visible
Woman  is marching  &
Whether  you  support  her or not
Warrior
Will  achieve  her  destiny  &
Will  bring  justice
Warrior's
Ward   is  going  to  get  recognition  ….
Whose  daughter is  she !
World  may  be curious  to know
Where  about  of  her 
Warrior's story
Will  be  read 
When her offspring  may tell
Wait  for the justice … have  patience
Writer will
Write  history … about  a living  legend .

एक जाड़े की सुबह और वह अनजाना पक्षी

जाड़े की सुबह थी |

धूप खा रही थी मैं खड़े खड़े | तभी देखा चारदीवारी और बिजली के तार पर पंक्तिबद्ध हो कर कौवे बैठे हैं और बार बार नीचे जमीन  की ओर देख कांव कांव करे जारहे हैं |

एक साथ सब उड़ते हैं फिर आ कर बैठ जा रहे हैं और कांव कांव कर रहे हैं |

" जरूर कुछ गडबड है ... हो सकता है कोई जानवर मर गया हो ....या कोई सांप वांप देख लिया हो कौवों ने ! " मन में विचार आया |
पर वहां तो कुछ नहीं था ... आश्चर्य चकित हो उस फूल की झाड़ियों के पास गयी ...
" अरे !....यहां तो कुछ नहीं ! "
तभी मेरे बगल से कुछ फडफडा कर उड़ा ... डर गयी ..सामने कोने में एक बड़ी मुर्गी के आकार का पक्षी बैठ गया .... अरे ! इसकी आंखे तो गोल हैं !... चेहरे से तो उल्लू दिखता है ...शरीर तो हल्के भूरे रंग का है ,,,, नवजात मुर्गी सा .... मेरी और उस पक्षी की आंखें मिलीं .... डर से भागी उलटे पांव .... मुझे लगा अभी वो मेरे सर पर बैठ जाएगा |
उल्लू नहीं देखा था कभी मैंने |
मेरे हटते  ही फिर कौवे आये ... इस बार वह पक्षी पकड़ में आ गया उनके ... दो कौवे पकड़ कर उड़े उसे ... कुछ ही दूर में उनकी चोंच से वह पक्षी छूट गया ...किसी के घर के बगान में गिर पड़ा |
यह उस अनजान पक्षी की ताकत थी जिसके कारण वह कौवों के समूह के कब्जे से छूटा |





Thursday, February 13, 2014

Happy Valentine day


आज पूणिमा है ...
इसे संक्रांति भी कहते हैं ....
कुछ जगहें ऐसी हैं ओडिसा में जहां हर माह पूर्णिमा के दिन बाजार की दुकानें बंद रहती हैं ..

So wish you all happy sankranti day

                 &

                  :)

Happy बेलन तान दे .... To all my friends …… kids , young , old people   ….

                  :)   

सबके घर कोई न कोई बेलन तानने वाली होगी ही .....


आज सुबह से फ़िल्मी धुन पर भजन का रसास्वादन चल रहा है ....

ओडिया भाषा में लिंग का प्रयोग




मैंने  देखा है ....ओडिया भाषा में लिंग प्रयोग में नही आती ...

राम गला    | ....राम गया |
सीता गला   | ...सीता गयी |

राम जायिछि |  ...राम गया है |
सीता जायिछि | ...सीता गयी है |

यह बात वर्षों ओडिसा में रहने पर भी दिमाग में न कौंधी ....पर आज दिमाग में आयी यह बात ....

जय हो !
कामवाली का ...
हिन्दी ठीक से बात न कर पाती है ...
आये दिन बोलती है ...
जाते समय बोलती है वो ...

मैं जाता हूं....

वो भी हिन्दी शायद बाजार  में सीखी होगी शायद .... जहां पुरुष रहते हैं ...बात चीत में स्त्रीलिंग का प्रयोग उसे न आया ..


I felt really very happy … कितनी बराबरी है स्त्री व पुरुष में इस प्रकार ...वाक्य के प्रयोग में कम से कम फर्क नहीं है ...

Tuesday, February 4, 2014

लोक कथाएं

बचपन में पढ़ी थी स्कूल की लाइब्रेरी में ... भारत के विभिन्न राज्यों की लोक कथाएं ...

जहां तक स्मरण है हर राज्य की एक पुस्तक थी लोक कथाओं से भरी |

अत: उन लोक कथाओं की याद में है ये ग्रुप ...


 https://www.facebook.com/groups/440846506025808/

एक कहानी बड़ी अद्भुत थी | आज भी याद है |
एक समुदाय के लोगों में यह रिवाज था कि जब दुल्हन अपने घर के दरवाजे पर दुल्हे के साथ पहुंचती थी तब सास कूएं में पैर लटका कर बैठ जाती थी |


" मैं अब इसी कूएं में कूद कर जान दे दूंगी | " फिर बहू उसे मना कर लाती थी |