Thursday, May 4, 2017

बेटी से हारना सीखें पिता

आज अशोक कुमार के फ़िल्मों पर बात उठी मेरे अपनों के बीच तो याद आयी मुझे स्कूल डेज़ में देखी एक मूवी .....मूवी का नाम याद नहीं , कथानक भी याद नहीं पर याद रह गये मुझे कुछ दृश्य । शायद मेरे बालमन को वे दृश्य बहुत भाए थे तभी तो उन्हें मैं आज तो नहीं भूली हूँ ।

मूवी में अशोक कुमार और माला सिन्हा पिता और पुत्री थे और वे दोनों ही पेशे से वक़ील थे । वे दोनों एक ऐसा केस लिए थे जिसमें वे दोनों कोर्ट में एक दूसरे  के विरोधी थे । कोर्ट  में उनके तकरार और घर में डाइनिंग टेबल पर की मिठास मुझे बहुत भाए थी । और मैं भूल न पाइ वह दृश्य ।

बेटी जब अपनी प्रतिभा से पिता को पछाड़ पाती है तो यह पिता  की जीत होती हैं । ऐसी बेटी बड़ी शक्तिशाली होती है । दंगल मूवी की नायिका भी एक अतुलनीय उदाहरण है ।

Friday, March 24, 2017

Daughter's battle


- Indu Bala Singh


Every daughter
Is one man army
She fights her battle alone
In her own way
She neither leads
Nor follows .

Feelings of a mother


- Indu Bala Singh


My dear child 
You are not to pay me off for the sacrifices I have done
It was my desire to give you bright future ....
Be positive and ambitious in your life .

Sunday, December 4, 2016

My lovely loneliness


Monday, December 05, 2016
8:03 AM
- Indu Bala Singh 


I had cut bushes and made my path alone 
I  did my work silently …..and walked  alone ….. Days , months and years  passed by …..
Now I love loneliness
At present I can see a vast sandy land in front of me ….. showing OASIS
The hot wind is so soothing ….
Now bushes are not seen …….
I walked opposite  to oasis
Because I loved my loneliness

I am maker of my own  lovely  DESTINY .

Friday, September 16, 2016

Say 'good bye '


Indu Bala Singh

Say good bye to toxic person
Forget
That the person may be friend or relative
And never look back .

Sunday, September 11, 2016

कबीर


तिनका कबहुँ ना निन्दिये जो पाँवन तर होय ।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ।।
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास ।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास ।।

प्रीति की मिठास



' भय बिन होय न प्रीति । ' भय भी बहुत प्रकार के होते हैं । आर्थिक दंड , शारीरिक ( बीमारी या बुढ़ापा ) दंड इत्यादि । वैसे यह सब हारे इंसान का यह भ्रम है । दंड प्रतिशोध और आतंक का जन्मदाता है । प्रीति तो वह बीज है जो धीरे धीरे बढ़ती है फलती फूलती है और अविश्वास के मौसम में कुम्हला जाती है । धीरे धीरे रे मना धीरे धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।। कुछ लोगों को ज्ञान देर में प्राप्त होता है ।