Sunday, September 11, 2016

प्रीति की मिठास



' भय बिन होय न प्रीति । ' भय भी बहुत प्रकार के होते हैं । आर्थिक दंड , शारीरिक ( बीमारी या बुढ़ापा ) दंड इत्यादि । वैसे यह सब हारे इंसान का यह भ्रम है । दंड प्रतिशोध और आतंक का जन्मदाता है । प्रीति तो वह बीज है जो धीरे धीरे बढ़ती है फलती फूलती है और अविश्वास के मौसम में कुम्हला जाती है । धीरे धीरे रे मना धीरे धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।। कुछ लोगों को ज्ञान देर में प्राप्त होता है ।

No comments:

Post a Comment