प्रीति की मिठास
' भय बिन होय न प्रीति । '
भय भी बहुत प्रकार के होते हैं ।
आर्थिक दंड , शारीरिक ( बीमारी या बुढ़ापा ) दंड इत्यादि ।
वैसे यह सब हारे इंसान का यह भ्रम है ।
दंड प्रतिशोध और आतंक का जन्मदाता है ।
प्रीति तो वह बीज है जो धीरे धीरे बढ़ती है फलती फूलती है और अविश्वास के मौसम में कुम्हला जाती है ।
धीरे धीरे रे मना धीरे धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।।
कुछ लोगों को ज्ञान देर में प्राप्त होता है ।
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