आज
सफाई करते हुए मुझे अपना बनाया एक रचनाओं का फोल्डर मिला | चाहती थी लगातार निकालूँ | पर सम्भव न हो सका | :)
नाम था -
रजनी-गंधा
मास - अप्रैल
याद
आ गये बीते दिन ......
मेरे
कालेज डेज में लेखकगण पोस्टकार्ड ,
अंतर्देशीय पत्र पर रचनाएँ लिख कर डाक में डाल देते थे | इस प्रकार पाठक मित्रों
को पठन सामग्री मिल जाती थी | जाहिर है यह एक प्रकार हस्तलिखित रचनाएँ हमें मिलती
थी | कुछ लोग रचनाएं एक पन्ने पर टाईप कर के फोल्डर के रूप में बना उसे स्टेपल कर
देते थे | हाँ डाक में डालने से पूर्व टिकट जरूर लगा देते थे |
कविताओं का
संकलन निकालने के लिए कवि से मनी ऑर्डर और
रचना दोनों मांगी जाती थी , संकलन छपने पर मांगे गये मूल्य की छपी पुस्तकें भेज दी जाती थीं | कुछ धनी पत्रिकाएं लेखक की
रचना छापने के बाद उस पत्रिका लेखक को भेज देती थी | लेखक अपनी रचना देख कर खुश हो
जाता था | फेसबुक और पेज का जमाना न था |
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