Friday, October 11, 2013

लेखन -- कालेज डेज का

आज सफाई करते हुए मुझे अपना बनाया एक रचनाओं का फोल्डर मिला | चाहती थी लगातार निकालूँ | पर सम्भव न हो सका |  :)

नाम था - रजनी-गंधा 
        मास - अप्रैल

याद आ गये बीते  दिन ......

मेरे कालेज डेज में लेखकगण पोस्टकार्ड , अंतर्देशीय पत्र पर रचनाएँ लिख कर डाक में डाल देते थे | इस प्रकार पाठक मित्रों को पठन सामग्री मिल जाती थी | जाहिर है यह एक प्रकार हस्तलिखित रचनाएँ हमें मिलती थी | कुछ लोग रचनाएं एक पन्ने पर टाईप कर के फोल्डर के रूप में बना उसे स्टेपल कर देते थे | हाँ डाक में डालने से पूर्व टिकट जरूर लगा देते थे |
कविताओं का संकलन निकालने  के लिए कवि से मनी ऑर्डर और रचना दोनों मांगी जाती थी , संकलन छपने पर मांगे गये मूल्य की छपी पुस्तकें  भेज दी जाती थीं | कुछ धनी पत्रिकाएं लेखक की रचना छापने के बाद उस पत्रिका लेखक को भेज देती थी | लेखक अपनी रचना देख कर खुश हो जाता था | फेसबुक और पेज का जमाना न था |




   

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