Wednesday, April 27, 2016

बसेरे से दूर ' by Harivansh Rai Bachhan

reading

' बसेरे से दूर ' by Harivansh Rai Bachhan

every Phd student should read it .
financial problems could not dishearten him in foreign land .
it shows how a man satisfies his thirst for knowledge .
this book will definitely boost our fighting spirit .



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तो फिर हर अड़ंगे का स्वागत ,
जो जिंदगी के चौरस रास्ते को ऊबड़ खाबड़ बना देता है ,
हर ठोकर का  स्वागत , जो कहती है , न बैठो , न खड़े रहो , बस  आगे बढ़ते चलो । 

पृ ० 79 .' बसेरे से दूर ' by Harivansh Rai Bachhan

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' कवियों की होती है बड़ी बदजात , लिखें वे किसी पर , पर करते हैं वे अपनी ही बात । '  


पृ ० 85  .' बसेरे से दूर ' by Harivansh Rai Bachhan



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मैं कितना ही भूलूं , भटकूँ या भरमाऊँ
है एक कहीं मंजिल जो मुझे बुलाती है ,
कितने ही मेरे पांव पड़ें ऊंचे - नीचे
प्रतिपल वह मेरे पास चली आती है |
मुझ पर विधि का अहसान बहुत - बातों का
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज्यादा -
नभ ओले बरसाये , धरती शोले उगले ,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है |
मैं जहां खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं ......
पृष्ठ - 216 ' बसेरे से दूर ' Harivansh Rai Bachhan

Sunday, March 6, 2016

Do not beg


-Indu Bala Singh

Teacher smiled ... advised ....
Dear student !
In place of begging marks
Why do you not point out my mistake
And
Say - teacher ! you forgot to give marks in this answer .....
Student was stunned .

Sunday, February 21, 2016

आज मैं भी उसके बराबर


- N.S.



एरोप्लेन की खिड़की से
बाहर झाँका मैं
और
मुँह चिढ़ाया मामू  चाँद को ----
आज मैं भी उसके बराबर था । 

Friday, February 19, 2016

टी ० वी ०


फेसबुक ( न्यूज पेपर ) और ट्रांज़िस्टर से ज्ञान प्राप्त करना ज्यादा बेहतर है ।
टी ० वी ० अगर खुल जाय तो बंद करना मुश्किल हो जाता है ।
अपना पसंदीदा कार्यक्रम तो हम कम्प्यूटर के टी ० वी ० पर भी देख सकते हैं ।
शायद यही कारण है आज नेट और कम्प्यूटर के फैलाव का , वैसे रेडियो ( ट्रांज़िस्टर ) तो सदा बहार है । रेडियो हमें खींच कर अपने सामने नहीं बैठाता ,बल्कि यह हमारे साथ साथ किचेन , स्टडी टेबल , लॉन , सड़क इत्यादि जगहों पर चलता रहता है । 

Tuesday, February 9, 2016

रोटी

रोटी की कीमत युवा व युवतियों को तब मालूम होती है जब वे घर से दूर नौकरी करने जाते हैं |मेस काखाना कम पैसों में मिलता है पर होटल का खाना तो पूछिये इतना मंहगा कि जेब खाली हो जाय | तब याद आती हैं घर की सूखी रोटियां |
सूखी रोटी आलू के चोखा से हम खायें या पनीर की सब्जी से पेट भर जाता है | रोटी तो केवल दूध के साथ बड़े प्यार से बचपन से खाते हैं बच्चे |
हाय रे ! नौकरी 
तूने याद दिला दी बचपन की सूखी रोटियां
मैं लाख भूलना चाहूं
पर
अकेले में मुझे सुस्ताते देख
चुपके से नजानें क्यों लुढ़कती हुयी आ जातीं हैं जेहन में
माँ के हाथ की सूखी रोटियां |

Monday, February 8, 2016

He slept



-Indu Bala Singh

Death proposed him
And
He happily accepted
He was a responsible father
He did his duty very well
So he slept happily .

Friday, February 5, 2016

Head ache maths


- Indu Bala Singh


Dear mathematician ! 
Couldn't you make easy questions ?
A class six student wrote on her book
And forgot .......
The maths teacher was shocked to see the note
On her student's book .