reading
' बसेरे से दूर ' by Harivansh Rai Bachhan
every Phd student should read it .
financial problems could not dishearten him in foreign land .
it shows how a man satisfies his thirst for knowledge .
this book will definitely boost our fighting spirit .
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जो जिंदगी के चौरस रास्ते को ऊबड़ खाबड़ बना देता है ,
हर ठोकर का स्वागत , जो कहती है , न बैठो , न खड़े रहो , बस आगे बढ़ते चलो ।
पृ ० 79 .' बसेरे से दूर ' by Harivansh Rai Bachhan
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' कवियों की होती है बड़ी बदजात , लिखें वे किसी पर , पर करते हैं वे अपनी ही बात । '
पृ ० 85 .' बसेरे से दूर ' by Harivansh Rai Bachhan
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मैं कितना ही भूलूं , भटकूँ या भरमाऊँ
है एक कहीं मंजिल जो मुझे बुलाती है ,
कितने ही मेरे पांव पड़ें ऊंचे - नीचे
प्रतिपल वह मेरे पास चली आती है |
मुझ पर विधि का अहसान बहुत - बातों का
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज्यादा -
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज्यादा -
नभ ओले बरसाये , धरती शोले उगले ,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है |
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है |
मैं जहां खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं ......
पृष्ठ - 216 ' बसेरे से दूर ' Harivansh Rai Bachhan
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