Tuesday, March 19, 2013

कविता के प्रति रुझान क्यों नहीं ?

आजकल देख रही हूँ बच्चों में कविता के प्रति रुझान के बराबर है | इसमें मैं विद्यालय को दोषी मानती हूँ | मैंने अपने समय में देखा है मंत्रमुग्ध से रहते थे हम बच्चे हिन्दी कक्षा में | हिन्दी क्या अंग्रेजी की कक्षा भी बांध देती थी हमे | एक ही कविता के विभिन्न अर्थ हो सकते हैं | कविता तो बस रस की गागर है | मैं नयी पीढ़ी के शिक्षकों की शिकायत नहीं कर रही पर उनमें कविता में गहराई तक उतरने की प्रवृति का अभाव तो जरुर है | बस पढ़ाना है तो पढ़ाते हैं शिक्षकगण | भई नंबर तो देना ही पड़ेगा | हाँ ! बच्चा अपने मन से कोई अपने शब्दों में व्याख्या लिख दे किसी पद्यांश की तो यह शिक्षक को बिल्कुल पसन्द नहीं आता | वह बच्चा कक्षा में अजूबा बन जाता है सहपाठियों के लिये | कविता का रसास्वादन ही बालमन में कोमलता भरती है | अब किसे दोष दें ? बच्चों में आज पैसे कमाने के तरीके का कुछ ज्यादा ही ज्ञान है

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