Wednesday, January 13, 2016

हरिवंश राय बच्चन - ' नीड़ का निर्माण फिर '

" मैं पेशेवर गद्य-लेखक की कल्पना कर सकता हूं पर पेशेवर कवि की नहीं । " 


हरिवंश राय बच्चन राय बच्चन ( नीड़ का निर्माण फिर )



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मेरी अस्थियों को 
चाहे गंगा की धारा में प्रवाहित कर दो 
चाहे घूरे पर फेंक दो ,
मेरे लिये कोई फर्क नहीं पड़ेगा :
पर तुम्हारे लिये पड़ेगा ।
- हरिवंश राय बच्चन राय बच्चन ( नीड़ का निर्माण फिर )

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' एकांत संगीत ' श्रृंखला में 65 वां
जुये के नीचे गर्दन डाल !
देख सामने बोझी गाड़ी,
देख सामने पंथ पहाड़ी ,
चाह रहा है दूर भागना , होता है बेहाल ?
तेरे पूर्वज भी घबड़ाये ,
घबराये , पर क्या बच पाये
इसमें फंसना ही पड़ता है , यह विचित्र है जाल !
यह गुरु भार उठाना होगा ,
इस पथ से ही जाना होगा ;
तेरी खुशी नाखुशी का है नहीं किसी को ख्याल !
जुये के नीचे गर्दन डाल |
read in ' नीड़ का निर्माण फिर '

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' मेरे अध्ययन कक्ष में तुलसीदास के चित्र के अतिरिक्त एक मात्र चित्र मेरे पिताश्री का है - शीशे से जड़ा , तुलसी के चित्र के साथ रखा | कोई मेरे अध्ययन कक्ष में आये तो मैं दोनों चित्रों का परिचय इस प्रकार देता हूं - ये मेरे पिता , ये मेरे मानस पिता |
बरसों हो गये पिताजी का चित्र एक बार गिर गया था और उसका शीशा चटख गया | मैंने जानबूझ कर वह शीशा नहीं बदलवाया | उस चटख को - क्रैक को - मैं उस घाव के प्रतीक के रूप में देखता हूं जो मैंने उनकी छाती पर दिया था | अपने अपराध को संस्मरण करने से मन पवित्र होता है , ऐसा सही या गलत मैं कहीं समझे हुये हूं | '
' मेरे अध्ययन कक्ष में तुलसीदास के चित्र के अतिरिक्त एक मात्र चित्र मेरे पिताश्री का है - शीशे से जड़ा , तुलसी के चित्र के साथ रखा | कोई मेरे अध्ययन कक्ष में आये तो मैं दोनों चित्रों का परिचय is प्रकार देता हूं - ये मेरे पिता , ये मेरे मानस पिता |
बरसों हो गये पिताजी का चित्र एक बार गिर गया था और उसका शीशा चटख गया | मैंने जानबूझ कर वह शीशा नहीं बदलवाया | उस चटख को - क्रैक को - मैं उस घाव के प्रतीक के रूप में देखता हूं जो मैंने उनकी छाती पर दिया था | अपने अपराध को संस्मरण करने से मन पवित्र होता है , ऐसा सही या गलत मैं कहीं समझे हुये हूं | '

- हरिवंश राय बच्चन ( नीड़ का निर्माण फिर )



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' मानव संबंध बना बनाया नहीं मिलता ।  जो मिलता है  बीज रूप में । फिर उस संबंध को सींचना - सेना  पड़ता है । पिता माता संतान अथवा  भाई बहन के संबंध भी अगर सींचे सेये न जायें तो वे कमजोर और विकार -ग्रस्त हो जाते हैं । '

- हरिवंशराय बच्चन (नीड़  का निर्माण फिर ) 



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‪#‎हरिवंश_राय_बच्चन‬
' आगरा के विनोदी कवि पं ० हृषीकेश चतुर्वेदी ने खेल खेल में एक दिन पत्नी पर लगे इस धर्म के ताले को तोड़ दिया । कहने लगे , धर्म-पुत्र वह है जो तन - जात पुत्र न हो , पर उसे वात्सल्य के कारण पुत्र मान मान लिया गया हो । इसी प्रकार धर्म - बंधु या धर्म - बहन उसे कहते हैं जो अपना असली भाई या बहन न हो।, बल्कि जिसे स्नेह - संबंध से भाई या बहन मान लिया गया हो । इसी तरह धर्म - पत्नी वह है जो अपनी पत्नी न हो , पर उसे किसी संबंध से पत्नी मान लिया गया हो । '


- हरिवंशराय बच्चन (नीड़ का निर्माण फिर )



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' मैं कभी किसी क्लब वगैरह का सदस्य नहीं बना , किसी कला साहित्य संस्था का भी नहीं । अलबत्ता अगर कोई मुझे निमंत्रित करती तो मैं उसमें सहर्ष भाग लेता । संस्थायें किसी न किसी सिद्धांत से बंधती हैं - मैं अपने को किसी सिद्धांत से बांधना नहीं चाहता था । मैं अब भी समझता हूँ कि मुक्त दृष्टि कलाकार की पहली आवश्यकता है । और यह भी कि बौद्धिक विकास और सृजन , समूह में नहीं , एकांत में ही सम्भव है । '

- नीड़ का निर्माण फिर  ( हरिवंश राय बच्चन ) 

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