आज ही मिली डाक से डा० हरिवंश राय की आत्मकथा - ' क्या भूलूं क्या याद करूं ' ।
दुबारा पढ़ रही हूं इसे करीब पैंतालीस साल बाद ।
पहली बार पढ़ा था इसे मैंने स्कूल के दिनों में ।
दुबारा पढ़ रही हूं इसे करीब पैंतालीस साल बाद ।
पहली बार पढ़ा था इसे मैंने स्कूल के दिनों में ।
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