-इंदु बाला सिंह
मेरे
दादा , दो भाई , एक भारत में सरकारी मास्टर दूसरा अंग्रेजों के समय
दक्षिण के किसी द्वीप में कुछ वर्षों तक कमा कर अपने गांव में एक मिट्टी का मकान , आठ बीघा
खेत शहर में दो मकान खरीद लिये पर आज अपनी कमाई से कोई सरकारी मास्टर एक मकान भी खरीदने के बारे में सोंच ही नहीं सकता |
केन्द्रीय
विद्यालयों में भी कांट्रैक्ट में हर वर्ष ग्यारह महीनों के लिये शिक्षक नियुक्त
किये जाते हैं | प्राईवेट स्कूल में तनख्वाह नगण्य है बस ट्यूशन का भरोसा है |
यह शहरों की
कहानी है |
तो क्या यह
नहीं लगता कि शहरों में हमारे बच्चों के भविष्य निर्माता अवहेलित हैं |
समस्या बड़ी है
अब क्या किया जाय |
चलिये मुंह
ढांप के सोना ही सुखद है |
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