Sunday, April 19, 2015

मुंह ढांप के सोना ही सुखद है |

-इंदु बाला सिंह 


मेरे दादा , दो भाई , एक भारत में सरकारी मास्टर दूसरा अंग्रेजों के समय दक्षिण के किसी द्वीप में कुछ वर्षों तक कमा  कर अपने गांव में एक मिट्टी का मकान , आठ बीघा खेत शहर में दो मकान खरीद लिये पर आज अपनी कमाई से कोई  सरकारी  मास्टर एक मकान  भी खरीदने के बारे में सोंच ही नहीं सकता |

केन्द्रीय विद्यालयों में भी कांट्रैक्ट में हर वर्ष ग्यारह महीनों के लिये शिक्षक नियुक्त किये जाते हैं | प्राईवेट स्कूल में तनख्वाह नगण्य है बस ट्यूशन का भरोसा है |

यह शहरों की कहानी है |

तो क्या यह नहीं लगता कि शहरों में हमारे बच्चों के भविष्य निर्माता अवहेलित हैं |

समस्या बड़ी है अब क्या किया जाय |


चलिये मुंह ढांप के सोना ही सुखद है |

Friday, April 17, 2015

Mean mentality


17 April 2015
16:53

-Indu Bala Singh


Success attracts enemy
And
We start living in castles .
Every afternoon
Hope  sits  on a branch of memory
Oil  it's feathers
And dream to return home one day
And
Chirp in the bushy neem tree
Which has been sold
By the  new occupant .
What type of success is this ?
Why do we have so mean mentality ?
Why can't we tolerate rising of our near and dear ?

Wednesday, April 15, 2015

Silence


16 April 2015
06:28

-Indu Bala Singh


Silence is source of energy
O dear !
It can kill
Your enemy
And
You also
So
O my beloved son
Let your brain
Rule your desire .