स्वप्न नवल
का
17.05.01
3A.M.
फिर भी न जाने
अब किस का
इंतजार है
पल पल गुजरता
है
पन्ने पलट रहे
हैं खुली डायरी के
मन में अब
किसका इंतजार है
न जानूं वो
घड़ी
न जाने कौन
सकून दे जायेगा
लगता है अब
वक्त ही सकून दे जाएगा |
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