Friday, January 17, 2014

एक स्वप्न

स्वप्न नवल का

17.05.01

3A.M.

फिर भी न जाने
अब किस का इंतजार है
पल पल गुजरता है
पन्ने पलट रहे हैं खुली डायरी के
मन में अब किसका इंतजार है
न जानूं वो घड़ी
न जाने कौन सकून दे जायेगा

लगता है अब वक्त ही सकून दे जाएगा |

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