20 July
2015
12:24
संस्मरण
-इंदु बाला सिंह
घर
में कहते थे शिवरात्रि का उपवास मत करो |
हमारे परिवार में सहता नहीं है |
और मैं सोंचती
थी पूजा तो भगवान की कर रहें हैं इसमें सहने और न सहने की क्या बात है | भगवान की
पूजा गलत बात कैसे होगी |
शिवलिंग को जल
चढ़ाते समय वर्षों तक दिमाग में यह बात न आयी कि मैं किसी ' लिंग ' को जल चढ़ा रही
हूं | आज भी मन नहीं मानता |
कहते हैं
......मानो तो देवता नहीं तो पत्थर ऐसी विचारधारा वाला मेरे दादा कभी कट्टर थे ही
नहीं | मूर्ति पूजा जरूरी ही न समझी गयी हमारे घर में |
मेरा अपना
मनोभाव सदा रहा है किसी पत्थर को इश्वर का प्रतीक मान कर पूजा जा सकता है |
आज लगता है
कितना उन्मुक्त आकाश था मेरे मन का |